भारत में विधेयक को कानून बनाने की प्रक्रिया पर विवेचना

  •  भारत में विधेयक को कानून बनाने की प्रक्रिया पर विवेचना कीजिये 
 उतर - किसी भी क़ानून को बनाने या संशोधित करने की विधायी प्रक्रिया संसद के किसी सदन में विधायी प्रस्ताव के पेश होने के साथ शुरू होती है ; इस तरह के प्रस्तावित 'कानून के मसौदे " को विधेयक कहा जाता है। 

कानून निर्माण प्रक्रिया :
प्रथम वाचन :  भारत में कानून निर्माण प्रक्रिया विधेयक के सदन में पेश किये जाने के साथ शुरू होती है। एक साधारण विधेयक /संविधान संशोधन विधेयक संसद के किसी भी सदन में अर्थात राजयसभा अथवा लोकसभा में मंत्री द्वारा या सदन के किसी अन्य सदस्य द्वारा पेश किया जा सकता है। महत्वपूर्ण बात यह है कि "विधेयक को संसद में पेश करने से पूर्व विधेयक की प्रतियां ,कम -से -कम दो दिन पहले ,सदस्यों के बीच वितरित की जानी आवश्यक है। इस चरण को विधेयक के प्रथम पठन के रूप में जाना जाता यही। सदन में विधेयक के पेश होने और भारत के राजपत्र में इसके प्रकाशन के साथ ,कानून निर्माण प्रक्रिया का पहला चरण यानी प्रथम वाचन समाप्त होता है। 

विधेयक को स्थायी समिति को भेजना 

 विधेयक के प्रथम वाचन के बाद ,विधेयक को एक स्थायी समिति के पास भेजा जाता है। समिति विधेयक के सभी मापदंड और प्रावधान का मूल्यांकन करती है और अपनी रिपोर्ट सदन को सौंपती है। 

द्वितीय वाचन 

 यह चरण विधेयक के अधिनियमित प्रक्रिया में सबसे महत्वपूर्ण और निरयकपूर्ण चरण है ,क्योकिं इस चरण में ,विधेयक न केवल सामान्य चर्चा से गुजरता है ,बल्कि उसकी अधिक विस्तृत जाँच और गहन परिक्षण की जति है। आइये इस चरण पर थोड़ा विस्तार से चर्चा करें. 

सामान्य चर्चा की अवस्था :  इसमें विधेयक का प्रतियां वितरित की जाती है। प्रतियों के वितरण के बाद ,एक सामान्य चर्चा (मुख्यतः विधेयक के मानक आधार पर चर्चा की जाती है ) परन्तु विधेयक के सिद्धांत और प्रावधानों पर बहुत विस्तृत और खंडवार चर्चा नहीं होती है। 

समिति के समक्ष विधेयक :  "कानून बनाने की प्रक्रिया में सामान्य चलन/प्रथा विधेयक को सदन की एक चयनित समिति को सौंपा जाना है ,जो विधेयक की खंडवार विस्तारपूर्ण जाँच करती है। 

विचार की अवस्था (खंडवार ) :  सदन में विधेयक के प्रत्येक प्रावधान ,खंड व् उपबंध पर विचार किया जाता है। सदन में प्रत्येक खंड पर चर्चा की जाती है और प्रत्येक खंड को मतदान के लिए अलग -अलग रखा जाता है। चर्चा की इतनी दीर्घ प्रक्रिया के अंत के साथ ,विधेयक अपनी अधिनियमित प्रक्रिया के अगले चरण में पहुँच जाती यही। 

तृतीय चरण :  इस स्तर पर विधायी प्रक्रिया ,विधेयक की अस्वीकृति या स्वीकृति तक ही सिमित होती है स्थापित अधिनियमन प्रक्रिया के अनुसार ,सदन का पीठासीन अधिकारी विधेयक के बहुमत से पास होने के बाद उसे विचार और मतदान के लिए ,विधेयक को संसद के दूसरे सदन में भेजता है। इसी के साथ प्रथम सदन में अधिनियम प्रक्रिया समाप्त होती है। 

दूसरे सदन में विधेयक :  सदन ,जिसमे विधेयक की उत्पति हुई थी ,से विधेयक के पारित हो जाने के बाद विधेयक को स्वीकृति प्राप्त करने के लिए संसद के दूसरे सदन में भेजा जाता है। दूसरे सदन में भी विधेयक को उसी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। 

संयुक्त बैठक :  संयुक्त बैठक संसद के दो सदनों के बीच गतिरोध को हल करने का एक संवैधानिक तरिएक है ,परन्तु इस प्रावधान का उपयोग वित्तीय विधेयक और संविधान संशोधन विधेयक पर उभरे गतिरोध के समाधान हेतु नहीं किया जा सकता है। एक संयुक्त सत्र भारत के राष्ट्रपति द्वारा बुलाया जाता है और इसकी अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष द्वारा की जाती है।  इसके अतिरिक्त संयुक्त सत्र की कार्यवाही को लोकसभा के नियम व विनियमन के अनुसार विनियमित किया जाता है। यदि संयुक्त बैठक का बहुमत विधेयक को मंजूरी देता है ,तो विधेयक को संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित माना जाता है। 

राष्ट्रपति की स्वीकृति 

 भारत में राष्ट्रपति संसद का हिस्सा होता है ,क्योकिं कोई भी विधेयक तब तक कानून नहीं बन सकता ,जब तक राष्ट्रपति द्वारा उसे स्वीकृति नहीं दी जाती है। इस प्रकार ,संसद के निचले और ऊपरी दोनों सदनों द्वारा उसे स्वीकृति नहीं दी जाती है। इस प्रकार संसद के निचले और ऊपरी दोनों सदनों द्वारा अनुमोदित होने के बाद ,संयुक्त रूप से या अलग से , प्रत्येक विधेयक राष्ट्रपति ले कार्यालय में भेजा जाता है। भारत के राष्ट्रपति अपने संवैधानिक दायित्वों के अनुसार कार्य करने के लिए स्वतंत्र है। राष्ट्रपति के समक्ष संविधान तीन विकल्प प्रदान करता है।  (क )  वह विधेयक को स्वीकृति प्रदान कर सकता है। (ख ) वह सदन को पुनर्विचार के लिए विधेयक वापस भेज सकता है। ; (ग ) वह विधेयक को स्वीकृति देने हेतु अनिश्चित काल तक रोक सकता है। यदि राष्ट्रपति विधेयक को अपनी सहमति प्रदान करता है , तो विधेयक कानून बन जाता यही और अब ,इसे देश का कानून माना जा सकता है। 

 विधेयक का लागू होना :  अधिकांश अधिनियम जैसा कि अधिनियम में सिफारिश की गई होती है उसी रूप में प्रभाव में आ जाते है। यह संभव है कि अधिनियम स्वीकृति (राष्ट्रपति द्वारा ) की तारीख से प्रभावी होगा या अधिनियम द्वारा निर्देशित किसी विशेष तिथि को या केंद्र या राज्य सरकार द्वारा सभी बातों को ध्यान में रखते हुए तय की गयी तिथि से लागू होता है। यदि अधिनियम की शुरुआत सार्वजानिक प्राधिकरण की इच्छा के अनुसार की गयी है तो एक अलग राजपत्र द्वारा इसकी जानकारी दी जाती है ,जो आम तौर पर नियमों में शामिल होती है या किसी अन्य सामान्य नोटिस में अधीनस्थ अधिनियमनं से जुडी होती है। 

 भारत में विधेयक को कानून बनाने की प्रक्रिया 

  •  प्रथम वाचन 
  • विधेयक को स्थायी समिति को भेजना 
  • द्वितीय वाचन 
  • सामान्य चर्चा की अवस्था 
  • समिति के समक्ष विधेयक 
  • विचार की अवस्था 
  • तृतीय वाचन 
  • दूसरे सदन में विधेयक 
  • संयुक्त बैठक 
  • राष्ट्रपति की स्वीकृति 
  • विधेयक का लागू होना 
  • कानून बनाना संसद का प्रमुख काम माना जाता है 
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