निष्पादक बजट व्यवस्था क्या है ?यह किस प्रकार परम्परावादी बजट से बेहतर है

 निष्पादक बजट व्यवस्था क्या है ?यह किस प्रकार परम्परावादी बजट से बेहतर है ?

 उतर - बजट आय और व्यय के ब्याज से अधिक है। यह सरकार की ओर से एक योजना ,विकास की एक रुपरेखा और सरकार की जवाबदेही तय करने का एक साधन है। बजट न केवल हमारे खर्च को योजनाबद्ध करने में हमारी मदद करता है बल्कि संसाधन के कुशलतम उपयोग को भी सुनिश्चित करता है। 

निष्पादक बजट व्यवस्था :

  वित् विधेयक और विनियोग विधेयक दोनों के पारित होने के बाद बजट का निष्पादन 

अगला चरण होता है। बजट के निष्पादन का मतलब है कि सरकार ,इस स्तर पर ,अपनी 

योजना और कार्यकर्मों को लागू करेगी और निष्पादन प्रक्रिया की निगरानी करेगी। 

योजनाओं और कार्यकर्मों के निष्पादन के लिए वित्तीय आवश्यकता को सरकार द्वारा 

,भारत के संचित निधि से पैसा निकालकर पूरा किया जाता है। सरकार ,क़ानूनी रूप से 

,विनियोग विधेयक के पारित होने के बाद भारत समेकित निधि से धन प्राप्त करने के लिए 

अधिकृत किया जाता है ,जैसा कि वित्तीय बिल में उल्लेख किया गया है। देश के कार्यकारी 

विभागों को राजस्व इकठ्ठा करने और संसद द्वारा अनुमोदित योजनओं पर धन खर्च करने 

की हरी झंडी मिलती है।  राजस्व संग्रह की जिम्मेदारी वित् मंत्रालय के राजस्व विभाग की 

होती है ,लेकिन अन्य सभी मंत्रालय आवश्यक राशि को वापस लेने और आवश्कतानुसार 

खर्च करने के लिए अधिकृत है। इन खातों का परिक्षण भारत के नियंत्रण और महालेखा 

परीक्षक द्वारा किया जाता यह। 

परम्परावादी बजट 

 बजट चक्र एक वित्तीय वर्ष (1 अप्रैल से 31 मार्च तक ) के लिए बजट विकसित करने की गतिविधियों और प्रक्रियओं का वर्णन करता है। प्राचीनकाल में भारत में बजट की उन्नत व्यवस्था विद्यमान थी। राजस्व पूंजीगत खातों की सभी प्राप्तियां और व्यय का सम्पूर्ण व् सूक्ष्म लेखा रखा जाता था।  खातों में आगामी वर्ष के लिए अनुमान व गत वर्ष के वास्तविक परिणाम शामिल किये  जाते थे।  सम्पूर्ण मंत्रिमंडल की एक गुप्त सभा होती थी जिसमे उनकी समीक्षा की जाती थी और समस्त विषयों पर उनकी सम्पूर्णता ,परिशुद्धता एंव संतोषजनक प्रकृति का निर्णय लिया जाता था। ब्रिटिश शासन के आगमन के उपरांत भारतीय वित्तीय व्यवस्था प्रभावी रूप से   ईस्ट इंडिया कंपनी के नियंत्रण में आ गयी। सन 1857 की क्रांति के पश्चात् वित्तीय प्रशासन में अव्यवस्था फ़ैल गयी। भारत सरकार के 1935 के  अधिनियम ने उसकी शक्तियों पर अंकुश लगाया।  सेवाओं के नियंत्रण के अतिरिक्त राज्य सचिव ने अपनी अधिकांश शक्तियों का  त्याग कर दिया। परंपरागत बजट ,उस काल की देन थी ,जब सरकार के कार्य संक्रिण होते थे अतः सार्वजानिक व्यय कम रहता था ,और प्रयत्न भी यही किया जाता था कि कम से कम खर्चा हो। साथ ही ,वित्त प्रशासन माध्यम व निम्न क्षेणी के कर्मचारियों को सदैव शंका की दृष्टि से देखता था तथा इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए उसने नियंत्रण की एक विशाल क्षृंखला उत्पन्न कर ली थी। निश्चय ही ,इससे प्रशासन 

 पारम्परिक बजट निर्माण व निष्पादन बजट निर्माण में अंतर : -  

  •  परंपरागत बजट निर्माण की कमियों को दूर करने के उद्देश्य से ही निष्पादन बजट निर्माण शुरू किया गया जिसने अब पूरी तरह से परंपरागत बजट निर्माण का स्थान ग्रहण कर लिया।  
  • पारम्परिक बजट "कल्याणकारी राज्य " की अपेक्षा "पुलिस राज्य "के लिए उपयुक्त है 
  • परम्परागत बजट प्रणाली जिसकी भारत में शुरुआत अंग्रेजों द्वारा  की गयी। 
  • परम्परागत बजट में क्रय के मदों पर जोर दिया जाता है। जिन पर खर्च किया जाना होता है। इसमें व्यय के उद्देश्य स्पष्ट नहीं किया जाता है। 
  • फ्लेक्स नीग्रो के अनुसार "परम्परागत बजट स्वभावतः अधिक कठोर होता है। नियंत्रण सरकार द्वारा की गयी  प्रत्येक मद /सेवा के लेखांकन द्वारा स्थापित किया जाता है।  
  • एस.एस विश्वनाथन के शब्दों में ,"निष्पादन बजट निर्माण एक ऐसा विस्तृत संक्रियात्मक दस्तावेज है जिसे कार्यक्रमों ,क्रियाओं के तहत तैयार किया जाता है ,प्रस्तुत किया जाता है और क्रियान्वित किया जाता है। 
  • निष्पादन बजट एक संगठन के उद्देश्यों का विश्लेषण करता है ,और फिर इसके अनेक कार्यों के अंतर्गत व्यय दिखाया जाता है। 
  • निष्पादन बजट ,बजट बनाने का एक नया तरीका प्रस्तुत करता है। परम्परागत बजट तो यह बताता है ,कि कितना खर्चा कर्मचारियों पर हुआ ,कितना स्टेशनरी पर ,कितना गाड़ियों पर आदि। 
  • निष्पादन बजट परंपरागत बजट से बहुत भिन्न है। 
  • परंपरागत बजट जिसे "लाइन -आइटम बजट " भी कहते है। कर्मचारी ,भवन ,सज्जा आदि व्यय की मंदो को ध्यान में रखकर बनाया जाता है। निष्पादन बजट विशिष्ट उद्देश्यों व कार्यों पर केन्द्रित रहता है। यह बताता है कि कितने कार्य सम्पादित करने का विचार है। 
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